भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

जब कभी भी आजमाया जायेगा / अश्वनी शर्मा

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज


जब कभी भी आजमाया जायेगा
आदमी औकात पर आ जायेगा।

शख्सियत औ कद बड़ा जिस का मिला
वो यकीनन बुत बनाया जायेगा।

कैद कर मेरी सहर की रोशनी
भोर का तारा दिखाया जायेगा।

ज़िद पे गर बच्चा कोई आ ही गया
चाँद थाली में सजाया जायेगा।

गर वो वादों पर यकीं करने लगे
उससे रोज़ी पर न जाया जायेगा।

फर्ज़दारी का सिला जो दे चुके
कत्लगाहों में बसाया जायेगा।

ये जहां तो इक मुसलसल मांग है इक ख़ुदा से कब निभाया जायेगा।