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घुट-घुट जीना भी क्या जीना है प्यारे / अश्वनी शर्मा
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घुट-घुटकर जीना भी क्या जीना है प्यारे
आग जगा इसमें, ये भी सीना है प्यारे।
कौन खुदाता है कुएं यूं ही राहों में
अपना कुआं खोदो जो पीना है प्यारे।
वो सुंगध, वो स्वाद कहीं तो मिल पायेगा
नया-पुराना हर चावल बीना है प्यारे।
कभी रेत से बने, रेत को जीकर देखें
ये अहसास पुराना, पर झीना है प्यारे।
बहुत उधारी बाकी है प्यारी धरती की
वो दाता है, तुमने तो छीना है प्यारे।