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हंसते-गाते, खाते-पीते, नये-पुराने लोग / अश्वनी शर्मा

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हंसते-गाते, खाते-पीते, नये-पुराने लोग
महफिल में अब आ बैठे हैं, कई सयाने लोग।

कई अनाड़ी हाथों में बंदूकें हैं फिर भी
तुक्के में ही साध रहे हैं सही निशाने लोग।

जैसी हो औकात मिलेगा वैसा निश्चित है
कैसे-कैसे ले आते हैं राज बहाने लोग।

जीने की है शर्त बेचना, बेच, बेच कुछ बेच
बाजारों में सजा रहे हैं कई दुकानें लोग।

सपनों के नक्शों को पढ़कर चलते जाते हैं
सपनों की शक्लों में बदले बस दीवाने लोग।

एक ज़िस्म के पार रूह की जब बाते होंगी
जाने-पहचाने लगते हैं, सब अनजाने लोग।