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गो कहन में इल्म का साया नहीं / अश्वनी शर्मा

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गो कहन में इल्म का साया नहीं
राग फिर भी बेसुरा गाया नहीं।

छान मारे कारवां औ रहगुजर
रहबरों में कुछ हुनर पाया नहीं।

एक पूंजी सी मिली थी ज़िन्दगी
एक लम्हा भी किया जाया नहीं।

वो बुलंदी इसलिये ना पा सका
ख़ाक होने का शऊर आया नहीं।

जो मिला सब कर्ज़ है या फर्ज़ है
साथ अपने मैं तो कुछ लाया नहीं।

सब मुखौटा हो हमें मंजूर है
तू मुखौटा हो ये कुछ भाया नहीं।

हम जले, जलते रहे हैं बारहा
क्यूं अभी माहौल गरमाया नहीं।