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वो कहते हैं जीवन का आधार नहीं है / अश्वनी शर्मा
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वो कहते हैं जीवन का आधार नहीं है
मैं कहता हूं कोई सलीकेदार नहीं है।
जो सिक्कों में बदल नहीं पाया वजूद को
ये पक्का है बंदा दुनियादार नहीं है।
रिश्ते-नाते, कसमें-वादे, देव-पुजारी
क्या बाकी है जिसका कि व्यापार नहीं है।
जो सपनों की ताकत पर जीना चाहे है
क्या पायेगा सपनों का आकार नहीं है।
सत्यानाशी के जंगल को क्या कोसेंगे
पेड़ कौनसा है जो कांटेदार नहीं है।
अगर मुहब्बत ही जीने की शर्त बने तो
बहुतेरों को जीने का अधिकार नहीं है।
खुली किताबों जैसे जब जी चाहे पढ़ लो
मंजे हुए किरदारों जैसे यार नहीं हैं।