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घाटे का ज़िन्दगी भी इक कारोबार है / अश्वनी शर्मा
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घाटे की ज़िन्दगी भी इक कारोबार है
कितना भी सूद दे लो, बाकी उधार है।
रंगों को देखने की आदत रही मगर
अब रंग-ए-आदमी का कोई शुमार है।
रिश्तों का एक जंगल, मांगें है चार सू
कारीगरी हो चाहे, दिखता तो प्यार है।
वो बदगुमान होकर महफिल से क्यूं गये
गो तबियतन तो बंदा, यारों का यार है।
अपने करीब आकर जायेगा क्या कोई
अपनी गली में केवल अपना खुमार है।