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बच नहीं पाती अघातों से जि़न्दगी / अश्वनी शर्मा

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बच नहीं पाती आघातों से ज़िन्दगी
कहां संवर पाती है, बातों से ज़िन्दगी।

कांपती लकीरों में ढूंढता नजूमी क्या
हार नहीं माने जज़्बातों से ज़िन्दगी।

आदम और हव्वा तो निकले थे साथ-साथ
बंटी-बंटी कैसे है जातों से ज़िन्दगी।

हाथों में चांद और आंखों में सूरज है
उलझ गई फिर भी शह-मातों से ज़िन्दगी।

नन्हे से सूरज को गेंद सा उछाल देख
थोड़ा सा सांस ले, खातों से ज़िन्दगी।