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बाकी रहे अल्फाज के, मानी, सहेजिये / अश्वनी शर्मा
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बाकी रहे अल्फाज़ के, मानी, सहेजिये
बरसा है जो, अनमोल है, पानी, सहेजिये।
बदरंग आसमां तो फितरत की बात है
अब भी मगर धरा है, धानी, सहेजिये।
जो कुछ किताब में है, उनको है सब पता
हमने तो, जी के, जो हैं, जानी सहेजिये।
हर तयशुदा समय पर हो जायेगा अता
है वक्त अब भी औघड़, दानी, सहेजिये।
यूं ही नहीं हुए है अलमस्त औ फकीर
है ख़ाक हमने जितनी, छानी, सहेजिये।