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ये वक़्त ठहर जाये थोड़ी सी जो शाम आये / अश्वनी शर्मा
Kavita Kosh से
ये वक्त ठहर जाये थोड़ी सी जो शाम आये
इस दौर-ए-मुहब्बत में, ऐसा भी मकाम आये।
कुछ जुल्फ संवर जाये, एक बूंद बरस जाये
अदना सा मुसाफिर है, कोई तो प्याम आये।
अपनों से शिकायत है, गैरों पे इनायत भी
अपनों की तो है मर्ज़ी, गैरों से सलाम आये।
हर दौर में होता है, कुछ नाम बड़े होंगे
इस दौर के नामों में अपना भी तो नाम आये।
अंदाज़ की तल्ख़ी तो हर रोज का रोना है
मख़मल सी जमीं से भी कोई तो कलाम आये।