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गो फलक पर चांद-तारे कम नहीं / अश्वनी शर्मा

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गो फलक पर चांद-तारे कम नहीं
आसमां पर आसमां हरदम नहीं।

सुर्ख़ फूलों से भी कोई बात कर
ज़िन्दगी हर रोज का मातम नहीं।

फितरतन बदला हमेशा आदमी
जो नहीं बदला कभी आदमी नहीं।

ज़िस्म ना जो रूह-ए-आदम तौल ले
बटखरों की जात में वो दम नहीं।

सिम्फनी की चाह तो रखते रहे
यूं मगर सीखी कभी सरगम नहीं।

कद बराबर कर दिये यूं काट कर
बैठ जाये जो बराबर हम नहीं।

नींद तारी हो गयी माहौल पर
रफता-रफता हो गई, यकदम नहीं।