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जीने की ज़िन्दगी को कोई वजह तो दे / अश्वनी शर्मा

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जीने की ज़िन्दगी को कोई वजह तो दे
इस शबनमी सुबह को थोड़ी जगह तो दे।

मैं चाहता हूं जैसा, वैसा न दे, न दे
मेरी तरह नहीं गर, तेरी तरह तो दे।

गर चांद हो मुनासिब, कर दे अता मुझे
हो ना अगर मुनासिब, ठंडी नजर तो दे।

आहें हजार दी गर, जो दी, सो दी, सो दी
आहों में आदमी के थोड़ा असर तो दे।

ठंडा सा ये शहर है, ठंडे से राबिदे
जिसमें हो कुछ हरारत, ऐसा बशर तो दे।

सहरा की ज़िन्दगी दी, तेरा करम है ये
दरिया-ए-रेत में भी कोई शज़र तो दे।