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कुछ जिक्र नहीं शामिल इसका तो हवालों में / अश्वनी शर्मा
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कुछ जिक्र नहीं शामिल इसका तो हवालों में
कैसे है गिने जाते कुछ लोग निहालों में।
यूं अश्क भले अपना कितना ही सगा होगा
जब ज़ब्त न कर पाये सिमटा है रूमालों में।
तारीख बदलना तो करवट है कलेण्डर की
गर दिन ही बदल जाये शामिल है कमालों में।
गर जिक्र चले कोई तेरा हो या मेरा हो
गैरों का छपा करता हर रोज रिसालों में।
करने की हिमाकत तो गो खूब करी हमने
फिर भी न जो कर पाये शामिल है मलालों में।