भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
जब कभी हालात ने तोड़ा-मरोड़ा आदमी / अश्वनी शर्मा
Kavita Kosh से
जब कभी हालात ने तोड़ा-मरोड़ा आदमी
हो गया कानून का तब से भगोड़ा आदमी।
आंधियों का भेद पाने की सनक में देखिये
है हवाओं में गया काफी झिंझोड़ा आदमी।
पालता है चींटियां औ कत्ल इंसां का करे
एक आफत है, बला है ये निगोड़ा आदमी।
जात इंसानी कहीं माकूल आ जाती उसे
आदमी ए काश होता और थोड़ा आदमी।
अब नहीं बाकी बची थोड़ी बहुत मासूमियत
सूखते अहसास ने ऐसा निचोड़ा आदमी।