भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

जो कहा, वो कह न पाया हो गया / अश्वनी शर्मा

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज


जो कहा, वो कह न पाया हो गया
शब्द का सब अर्थ जाया हो गया।

आदमी अब इक अजब सी शै बना
आज अपना कल पराया हो गया।

ज़िन्दगी दी और सिक्के पा लिये
सब कमाया, बिन कमाया हो गया।

जब हिमागों की सड़न देखी गयी
आसमां तक बजबजाया हो गया।

बाप उस दिन दो गुना ऊंचा हुआ
जब कभी बेटा सवाया हो गया।

कल नये रंगरूट सा भर्ती हुआ
चार दिन में खेला खाया हो गया।

अब ख़ुदा वो वक्त का कहलायेगा
अब गज़ट में नाम शाया हो गया।