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सुर्ख पत्तों सी सांस चलती है / अश्वनी शर्मा


सुर्ख़ पत्तों सी सांस चलती ह
ज़र्द पत्तों के साथ ढलती है।

आस कोई यतीम बच्ची है
एक लाचारगी सी पलती है।

आज आंगन संवार रखना है
रात को चांदनी टहलती है।

आसमां बेकार बूढ़ा है
ओस अश्कों सी आ निकलती है।

ज़िन्दगी एक ख़्वाहिशें कितनी
ये जो तबियत है, तो, मचलती है।

बारिशें बदहवास लड़की सी
देख सूरज जरा संभलती है।

ये जो आंसू नहीं कोई कतरा
इक जमाने की पीर पलती है।