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बात-बात में लाचारी हो, ऐसा क्यों / अश्वनी शर्मा
Kavita Kosh से
बात-बात में लाचारी हो, ऐसा क्यों
दुनिया में बस दुनियादारी हो, ऐसा क्यों।
कहना-रहना, रहना-कहना, अलग-अलग
कहना, रहने से भारी हो, ऐसा क्यों।
फाकाकश, अलमस्त, फकीरों की बस्ती
इसकी भी अब ऐय्यारी हो, ऐसा क्यों।
जीवन का सम्मान सभी का हक माना
आधी दुनिया बेगारी हो, ऐसा क्यों।
अमन चैन की बातें यूं तो रोज करें
लड़ने की भी तैयारी हो, ऐसा क्यों।