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गोपीचन्दर, हरा समंदर / अश्वनी शर्मा
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गोपीचन्दर, हरा समंदर
खाली भी है, भरा समंदर।
बढ़ता भी है, वापिस जाता
खूब डराये, डरा समंदर।
एक बगावत सी नदियों में
बात सुनोगे, जरा समंदर।
मीठा होना, खतरा होना
खारा चाहे, खरा समंदर।
अब काला सोना देता है
कभी कहीं था, मरा समंदर।
कम पाता, ज्यादा देता है
आन रखी ना टरा समंदर।
देव राक्षस सबने पाये
रत्न दिये जब झरा समंदर।