भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

ये पीना भी कोई पीना होता है / अश्वनी शर्मा

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज


ये पीना भी कोई पीना होता है
जीना-मरना, मरना-जीना होता है।

कभी गरेबां में न झांका, कहते हैं
रामखिलावन सदा कमीना होता है।

कर्ज़ पटाते, फर्ज निभाते उम्र हुई
सदा सफर में एक सफीना होता है।

सज जायेगा ये भी किसी अंगूठी में
कहां अकेला कोई नगीना होता है।

वो कहते हैं प्राणायाम सदा इसको
हांफा, हांफा जब भी सीना होता है।

लोग कई पीढे से भी चढ़ जाते हैं
हर मंज़िल पर कब ये जीना होता है।