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घर तो है, दीवारों सा है / अश्वनी शर्मा

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घर तो है, दीवारों सा है
मन अपना बनजारों सा है।

वक्त की फितरत जाने क्या है
दुश्मन है पर यारों सा है।

तौर-तरीके जैसे भी हों
अन्दर कुछ अवतारों सा है।

उसको ज्ञानी कहती दुनिया
जो बासी अखबारों सा है।

जिसको रब कहते आये हैं
कुछ धुंधले आकारों सा है।

एक शख़्सियत लगता है जो
माटी के किरदारों सा है।

किसका दम भरते हो प्यारे
हर आदम बेचारों सा है।