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अब ज़िन्दगी के मायने क्या सोचता तो हूं / अश्वनी शर्मा
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अब ज़िन्दगी के मायने क्या सोचता तो हूं
जब झूठ है रवायत, सच बोलता तो हूं।
बेरंग आसमां में आंधी का जोर है
माहौल की घुटन को कुछ तोड़ता तो हूं।
बस्ती तो जैसे पूरी सांपों ने सूंघ ली
चाहे डरा हुआ हूं, दर खोलता तो हूं।
कितने निज़ाम-ए-काफिर अब तक तो हो लिये
ईमान की गली में मैं डोलता तो हूं।
चुप्पी चलन पुराना, मुंह फेरना अदा
हैं बेहया हिमाकत, मैं टोकता तो हूं।
आलम ख़ुमारियों का, मस्ती का दौर भी
जब डंक सा चुभा हूं झकझोरता तो हूं।