उनका तो ये मज़ाक रहा हर किसी के साथ
खेले नहीं वो सिर्फ़ मिरी ज़िंदगी के साथ
आज़ाद हो गये हैं वो इतने, कि बज़्म में
आए किसी के साथ, गए हैं किसी के साथ
अपनों की क्या कमी थी कोई अपने देश में
परदेस जा बसे जो किसी अजनबी के साथ
फिरते रहे वो दिल में ग़लतफ़हमियाँ लिये
ये भी सितम हुआ है मिरी दोस्ती के साथ
'महरिष' वो हमसे राह में अक्सर मिले तो हैं
ये और बात है कि मिले बेरुख़ी के साथ.