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उम्र भर बस यही इक उदासी रही / धीरेन्द्र सिंह काफ़िर

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उम्र भर बस यही इक उदासी रही
आपके दीद को आँख प्यासी रही
आपके बाद जाने के बस दो यही
बेक़रारी रही, बदहवासी रही
याद करने से क्या कोई आये भला?
एक उम्मीद थी जो ज़रा सी रही
मिस्ले- नामा- ए- बेनाम की ही तरह
मेरे अफ़सानो की इक हवा सी रही
हाले- दिल क्या बयां और कहके करूँ?
हार अपनी हुई और खासी रही