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उल्फ़त में तमन्नाओं का सौदा नहीं करते / 'महताब' हैदर नक़वी
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उल्फ़त में तमन्नाओं का सौदा नहीं करते
साये की ज़रूरत हो तो साया नहीं करते
क्यों ग़ौर से सुनते हैं सब आवाज़-ए-जरस को
मंज़िल की तरफ़ काफ़िले जाया नहीं करते
आँखों से कहो कोई नया ख़्वाब न देखें
पलकों पे बहुत बोझ उठाया नहीं करते
कममायगी-ए-ज़ौक़-ए-तलब हम में है वरना
प्यासे कभी दरिया पे भरोसा नहीं करते
वहशत के सबक़ हमको सभी याद हैं अब तक
जुज़ इश्क़ कोई काम भी सीधा नहीं करते