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उसकी यादों में दिन गुज़र जायें / 'महताब' हैदर नक़वी
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उसकी यादों में दिन गुज़र जायें
उम्र यूँ ही तमाम कर जायें
दिल ये कहता है एक और सफ़र
पाँव कहते हैं अपने घर जायें
वो नहीं हैं तो अब रहा क्या है
क्यों न दुनिया से अब मुकर जायें
याद आती है बिछड़े लोगों की
ये शब-ओ-रोज़ कुछ थर जायें
रास्ता, रास्तों ने काट दिया
किसको आवाज़ दें किधर जायें