उस्ताद गए फिर वो असासा चला गया / संजय चतुर्वेदी
दौर-ए-जहाँ में कौन से स्कूल गए हैं
उर्दू है जिसका नाम हमीं भूल गए हैं
ये और बात सन्सकिरित हाथ न आई
जिस राह से इस क़ौम के मक़बूल गए हैं
हिन्दी गई बोली गई विरसा चला गया
बातों में गोटमार का क़िस्सा चला गया
ख़ारिज हुआ मज़ाक़ ज़ुबां ही चली गई
उस्ताद गए फिर वो असासा चला गया
तुर्रा है यहाँ ये कि नया दौर आ गया
ऊपर से ये ख़िताब बड़ा दौर आ गया
कोई तो उस मक़ाम पे आया नहीं हनोज
कोई तो लब-ए-बाम पे आया नहीं हनोज
कैसा ये बड़ा दौर गुटुरगूँ का चल पड़ा
हमने कबूतरों को महाकवि बना दिया
चालाक लोमड़ी को दिया मर्तबा अज़ीम
हर्राफ़ जोकरों को महाकवि बना दिया
मुश्ताक़-ए-सुख़न है अभी हिन्दोस्ताँ के लोग
ऐवाँ में बेशऊर-ओ-बेउसूल गए हैं
दुश्मन हुए मज़ाक़-ए-अदब के मुसन्निफ़ीन
दरिया में अब गिरोह के मस्तूल गए हैं
(2017)