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एके तो अबला नारी दोसरे जे एसकरी / भवप्रीतानन्द ओझा
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भादुरिया झूमर
एके तो अबला नारी दोसरे जे एसकरी
राती घनघोर
पिया के मधुरे-मधुरे स्वप्ने
निशि हेल भौर
स्वप्ने सुनेछी सुनेछी बाँसी बेंधे छिलाम काल शशि
दिये भुज डोर
सतिनी समान देखी पुरूषेर रांगा आँखी
पाखी करे शोर
कहत जे भवप्रीता तनीको ने धिरिजिता
धिना मनचोर।