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एक कवि की ऊब कथा / शरद कोकास

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ऊब कुछ इस तरह गिर रही थी जीवन पर
कि उस पर धूल जम रही थी
लगता था अभी चमक उठेगा पोंछ देने पर

मन के इस धुंधलेपन में वह मंजीरा बजाता
और ज़ोर-ज़ोर से गाता कोई फिल्मी भजन
जिसमें गाना कम चीखना ज़्यादा हो
मानो ऊब चुका हो अपनी ही आवाज़ से
और तालियाँ पीटता इस क़दर
जैसे पिट रहा हो अपने ही हाथों

वह सोचता आत्महत्या के सुखद और त्रासद तरीकों के बारे में
और उदयप्रकाश के शब्दों में
चूँकि उसके सोचने में ही जीना था
गोया उसकी ऊब ओढ़ी हुई दिखाई देती

हर सुबह वह प्रण करता कि बस अब नहीं
दुख, घुटन, चिंता, अवसाद और शराब
और शाम फिर इन्हीं से भरे गिलासों के बीच नज़र आता
यह हताशा थी ऊब की मुँहबोली बहन
कि उसमें डूब जाने से बेहतर उसे लगता इसमें डूब जाना

दिनभर उन्हीं फाईलों में सर घुसाए बैठा रहता
जैसे कि वह उसका आखि़री दिन हो नौकरी का
और सुबह जब उसे याद आता
कि सर तो वह वहीं भूल आया है
फिर निकल जाता उसे ढूँढ़ने कागज़ की गुफाओं मंे

उसकी बीवी रोज़ वही बहस करती
जैसे कोई घिसा हुआ पुराना रिकॉड हो
एक ही ज़िद पर बार-बार अटक जाने वाला
और संस्कारों के बेंत से बच्चों को पीटती
बच्चे उसके कपड़ों से चमगादड़ की तरह लटकते
तब एक पेड़ की तरह वह
अपने बूढ़े होने का इंतज़ार करता
और रोज़ गिरा देता ऊब के पुराने पत्ते

उसकी डायरी में बस एक पन्ना लिखा हुआ था
उस शाम का ज़िक्र उसमें जब उसकी कलम पर
एक तितली आकर बैठ गई थी
फिर उसके बाद हर पन्ने पर सिर्फ तारीख़ थी
तो हर पन्ने पर वही-वही लिखा पाया

जब भी उसने ऊब को आदत बनाने की कोशिश की
तो पाया कि वह उसके वर्ग का स्थायी दशर््न नहीं है
और उसके बाद जकड़े जाने और मुक्त होने का खेल भी
आकषर््क होते हुए नहीं है उसके बस का

कवियों और मनुष्यों में विशिष्ट होने की ऊहापोह में
खु़दा भी नहीं हो सका वह अपनी संतृप्तता में
उसके लिए ज़रूरी था हर वक़्त पेट का भरा होना
और भावातीत ध्यान की तरह ऊब में डूब भी नहीं सका
कि हर बार वह उसे अपने तोड़ने का निमंत्रण देती
और सुखी होने का एक अवसर छीन लेती

घोषणापत्र में यह पढ़कर
कि इस बार ऊब दूर करने के नये अवसर प्रदान किये जाएंगे
हर बार वह पर्दे के पीछे पहुंच जाता
और अपने नागरिक होने के दायित्व में
उस नाम के आगे का बटन दबा आता
जिसे वह सबसे ज़्यादा नापसंद करता

अंत में उसने सोचा कि ऊब तोड़ने के लिए
किसी पहाड़ पर चला जाऊँ
किसी प्रतिनिधि मंडल में शामिल होकर
कर आऊँ विदेश यात्रा
किसी कवयित्री से दैहिक प्रेम करूँ
या रसगुल्ले खाने या मूँछ बढ़ाने जैसा
कोई साहसिक कार्य करूँ
जिससे ऊब भी टूटे
और गिनीज़ बुक में नाम भी आ जाए

अंततः जब कुछ नहीं सूझा
तो ऊब से भरे हुए कवि ने लिखी
ऊब से भरी हुई
उत्तर आधुनिक किस्म की एक कविता
और इंडिा हाउस में पाठ करने चल दिया।

-2004