भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

एक दिन न रोने का फ़ैसला किया मैं ने / 'शहपर' रसूल

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

एक दिन न रोने का फ़ैसला किया मैं ने
और फिर बदल डाला अपना फ़ैसला मैं ने

दिल में वलवला सा कुछ चाल में अना सी कुछ
जैसे ख़ुद निकाला हो अपना रास्ता मैं ने

मुझ में अपनी ही सूरत देखने लगे हैं सब
जाने कब बना डाला ख़ुद को आईना मैं ने

उस को भी था कुछ कहना मुझ को भी था कुछ सुनना
और कुछ कहा उस ने और कुछ सुना मैं ने

कुछ ख़बर न थी मुझ को खिल रहा है कोई गुल
बस हवा का आईना देख ही लिया मैं ने

वक़्त ने हर आहट पर ख़ाक डाल दी ‘शहपर’
कर दिया अदा आख़िर जिज़्या-ए-अना मैं ने