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एक यात्रा के दौरान / तेरह / कुंवर नारायण
Kavita Kosh से
धीमी पड़ती चाल ।
अगले ठहराव पर
उतर जाना है मुझे ।
एक सिहरन-सी दौड़ जाती नसों में ।
पहली बार वहाँ जा रहा हूँ ।
हो सकता है कोई लेने आये, या कोई नहीं
केवल एक सपाट प्लटफॉर्म मिले,
बर्फीली ठंढक, अँधेरे और अनिश्चय का
घना कोहरा : इतनी रात गये
एक बिल्कुल नयी जगह से नयी तरह
संबंध बनाता हुआ एक अजनबी ।
एक ख़ामोश-सी तैयारी है मेरे आसपास
जैसे यह मेरा घर था
और अब मैं उसे छोड़कर कहीं और जा रहा हूँ ।