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ऐसा लगता है, पता नहीं कैसा लगता है/ प्रेमशंकर रघुवंशी

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ऐसा लगता है, पता नहीं कैसा लगता है


सुख सूना-सूना सा लगता है
दुःख दूना-दूना सा लगता है
मन ऊना-ऊना सा लगता है

शाम पांच का वक़्त
छह का लगता है
ऐसा लगता है
पता नहीं कैसा लगता है

ज्ञानी कहते हैं--
जो जैसा, वो वैसा लगता है
--उसको कैसे जानें, जो ऐसा लगता है?
रोज़ डूबता दिन, जैसे का तैसा लगता है.