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औरत / ज़िन्दगी को मैंने थामा बहुत / पद्मजा शर्मा
Kavita Kosh से
अपनी खुशी के लिए
जीवन की दोपहर में उसे
उसकी दुनिया से बहुत दूर ले आया था मैं
अब उसकी खुशी के लिए लौटा रहा हूँ उसे
वह तब भी रोई थी
वह अब भी रो रही है
अजीब दुविधा में है औरत
खुशी की बात पर रोती है
और रोने की बात पर भी रोती है
मैं चाहता हूँ कि जैसे रोने की बात पर रोती है
वैसे ही हँसने की बात पर खुलकर हँसे भी औरत
एक इन्सान की तरह बिना किसी अपराध बोध के
औरत होने के...