भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

कच्चे बखिए की तरह रिश्ते उधड़ जाते हैं / निदा फ़ाज़ली

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

कच्चे बखिए की तरह रिश्ते उधड़ जाते हैं
हर नए मोड़ पर कुछ लोग बिछड़ जाते हैं

यूँ हुआ दूरियाँ कम करने लगे थे दोनों
रोज़ चलने से तो रस्ते भी उखड़ जाते हैं

छाँव में रख के ही पूजा करो ये मोम के बुत
धूप में अच्छे भले नक़्श बिगड़ जाते हैं

भीड़ से कट के न बैठा करो तन्हाई में
बेख़्याली में कई शहर उजड़ जाते हैं