कजली / 33 / प्रेमघन
उर्दू भाषा
दिल तुझ पर है आया जान! फिरा करता हूँ मैं हैरान;
हज़ारों लिए हुए अरमान, बता मिलने का कोई ज़रिया।
आऊँ मैं किस तर्ह किधर से, मुश्किल महज़ गुज़रना दर से;
है अफसोस तेरे भी घर से, नहीं हिलने का कोई ज़रिया।
बाहर 'अब्र' प्रेमघन हद, के पहुँचा हिज़ क़िस्मते बद के;
बाइस, नहीं गुले मक़सद के, मेरे खिलने का कोई ज़रिया।
॥दूसरी॥
तेरे फ़िराक़ में हैरानी, हमको जैसी पड़ी उठानी;
सुन तो उस्की ज़रा कहानी, करम कर अब ऐ दिलबर जानी।
रूए रौशन का दीदार, दिखलाने में भी इन्कार;
करता है क्यों तू हर बार, बता तो सबब ऐ दिलबर जानी।
हुस्ने दिल-फ़रेब यः जान, है थोड़े दिन का मिहमान'
ढलने पर शबाब के शान रहेगी कब ऐ दिलबर जानी।
घिरकर "अब्र" प्रेमघन! छाये सैरे गुलशन के दिन आये;
तू भी साथ अगर मिल जाये, मजा हो तब ऐ दिलबर जानी।