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कजली / 38 / प्रेमघन

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रंडियों की लय

मनहुँ मदन मदहारी तोरी मनमोहनी मुरतिया रामा।
हरि हरि भूलै ना सूरतिया प्यारी-प्यारी रे हरी॥
कसकैं नैन सैन हिय बेधे मानौ कोर कटारी रामा।
हरि हरि मुस्कुरानि छबि छहरै न्यारी-न्यारी रे हरी॥
गोरे गालन अलकैं, छलकैं सरद चन्द पर जैसे रामा।
हरि हरि लोट रहीं नागिनियाँ कारी-कारी रे हरी॥
जोहत जुग जोबन लट्टू से, होत हाय! मन लट्टू रामा।
हरि हरि निखरी जोति जवनियाँ बारी-बारी रे हरी॥
बरस बरस रस बेगि प्रेमघन! बिन मेरे कल नाहीं रामा।
हरि हरि कौन मूठ पढ़ तू ने मारी-मारी रे हरी॥67॥

॥दूसरी॥

नागरी भाषा

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मुरली मधुर सुनावो हमसे भी तो आँख मिलावो रामा।
हरि हरि गिरधारी, बनवारी, यार मुरारी! रे हरी॥
अलकैं घूँघरवारी, लहरैं जैसे नागिन कारी रामा।
हरि हरि लगैं चाँद-सी सूरत पर क्या प्यारी रे हरी॥
आवो पिया प्रेमघन वारी जाऊँ मैं बलिहारी रामा।
हरि हरि बरसाओ रस मानो अरज हमारी रे हरी॥68॥

॥तीसरी॥

आकर गले लगा ले, मेरे निकलत प्रान बचा ले रामा।
हरि हरि साँवलिया मैं तोपैं वारी-वारी रे हरी॥
लगी लगन अपनी है तुमसे, अब क्यों हाय सतावो रामा।
हरि हरि दिखला जा सूरतिया प्यारी-प्यारी रे हरी॥
पिया प्रेमघन दिलबर जानी! तुझ पर मैं दीवानी रामा।
हरि हरि कौन मोहनी तू ने डारी-डारी रे हरी॥69॥