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कजली / 39 / प्रेमघन

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नटिनों की लय

मन्द मन्द मुसुकानि मनोहर बानि मोहनी डारै रामा।
हरि हरि जियरा मारै कजरारी नजरिया रे हरी॥
क्या करौं दिया सारी, पहिने लागी लैस किनारी रामा।
हरि हरि निखरि परी ओढ़े धानी चादरिया रे हरी॥
उभरे जोबन अंचल, पर कर देत चित्त हैं चंचल रामा।
हरि हरि देखत धसैं हिये ज्यों कोर कटरिया रे हरी॥
लाख आँख उलझाये, चलती ठहर-ठहर बल खाये रामा।
हरि हरि बाल कमानी-सी लचकाय कमरिया रे हरी॥
पीर प्रेम की समझि, प्रेमघन हम पर दया दिखावो रामा।
हरि हरि चार दिना है जोबन की बहरिया रे हरी॥70॥

॥दूसरी॥

निकरल ऊ तो आफत कै परकाला रे हरी॥
औरन के संग जाला, रोजै बदलि रंग चौकाला रामा।
हरि हरि देखत हमकै दूरै से कतराला रे हरी॥
जादू हम पर डाला, मारा कहर नजर का भाला रामा।
हरि हरि गोरी सूरत मीठी मूरत वाला रे हरी॥
पिया प्रेमघन तरसावै, दै, टाला कसे निराला रामा।
हरि हरि पड़ा कठिन बस! बेदरदी संग पालारे हरी॥71॥

॥तीसरी॥

बनारसी लय

हम पर जानी! तू नै जादू डाला रे हरी॥
सोहै सुन्दर बाला, कानन में क्या झूमकवाला रामा।
गरवां में छहराला मोती माला रे हरी॥
कर चेहरा चौकाला, देकर सुरमे का दुम्बाला रामा।
कैसा मारा कहर नजर का भाला रे हरी॥
क्या लहँगा लहराला, लाल दुपट्टा गजब सुहाला रामा।
देखत चोली हरी हाय जिउ जाला रे हरी॥
सरस प्रेमघन आला, पायल नूपुर सोर सुनाला रामा।
चलत चाल जैसे मतंग मतवाला रे हरी॥72॥