कजली / 61 / प्रेमघन
पंचम विभेद
ढुनमुनियाँ में गाने की कजली
मोरे हरी के लाल
"तिसिया के तेलवा मैं मुड़वा दबायो मोरे हरी के लाल"-की लय
जमुना के तीर भीर भई आज भारी-जसोदा के लाल।
झूलैं झूला मिलि गोपी ग्वाल-जसुदा के लाल॥
गावैं सब सखी मिलि कजरी रसीली-जसुदा के लाल।
बाँसुरी बजावैं दै-दै ताल-जसुदा के लाल॥
डरन डेराय प्यारी आय गर लागै-जसुदा के लाल।
होयँ तब निपट निहाल-जसुदा के लाल॥
लपटाय मोतिन के हार हरखने-जसुदा के लाल।
सटि मुरझावैं वनमाल-जसुदा के लाल॥
कौनौ सखिया कै उड़ी ओढ़नी ओढ़ावैं-जसुदा के लाल।
चंचलहु अंचल सँभाल-जसुदा के लाल॥
झूलत केहू कै नथ बेसर बंचावै-जसुदा के लाल।
केहूकै सुधारैं बेंदी भाल-जसुदा के लाल।
छतियाँ लगाय डर केहूकै छोड़ावैं-जसुदा के लाल।
कौनो के गरे में भुज डाल-जसुदा के लाल॥
इति भाँति प्रेमघन रस बरसावैं-जसुदा के लाल।
रवि छल छन्दन के जाल-जसुदा के लाल॥107॥