कजली / 69 / प्रेमघन
द्वितीय विभेद
डेवढ़
" कहथीं पंडाइन पांडे सुन मेरी बतियाँ, जोन्हरी बोआयः जिव कै काल राति
खेते म सियार बोलै खेते म सियार बोलै ना" की चाल
सुनि सुनि सैय्याँ तोरी बतियाँ,
जियरा हमार डरै! जियरा हमार डरै ना!
सावन मास चलन कित चाहत, करि छल बल की घतियाँ;
जियरा हमार डरै! जियरा हमार डरै ना!
नहिं बीतत बालम बिन बरखा, की अँधियारी रतियाँ;
जिअरा हमार डरै! जियरा हमार डरै ना!
पिया प्रेमघन घन घिरि आये, सूतो लगकर छतियाँ;
जियरा हमार डरै! जियरा हमार डरै ना!॥117॥
॥दूसरी॥
बोलन लगे हैं बन मोरवा,
सोरवा मचाय हाय! सोरवा मचाय हाय! ना॥टे।॥
सूनी सेज अँधेरी रतियाँ, जगत होत नित भोरवा;
मोहिं न सुहाय हाय! सोहिं न सुहाय हाय ना!
पिया प्रेमघन तुम कहाँ छाये, भूलि सूरति चित चोरवा;
मिलु अब आय हाय! मिलु अब आय हाय ना!॥118॥