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कभी फिर मिलोगे तो कैसा लगेगा ! / कांतिमोहन 'सोज़'

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कभी फिर मिलोगे तो कैसा लगेगा !
नहीं फिर मिलोगे तो कैसा लगेगा !

तुम्हें देखकर हम जिगर थाम लेंगे
इरादा तो है सब्र से काम लेंगे
ये कैसे कहें हम नज़र फेर लेंगे
न कोई सुने इस तरह नाम लेंगे
ज़माना हँसा था ज़माना हँसेगा ।

कभी फिर मिलोगे तो कैसा लगेगा ।
नहीं फिर मिलोगे तो कैसा लगेगा ।।

ज़बां चुप रहेगी मगर बात होगी
कभी शह लगेगी कभी मात होगी
न सूरज ढलेगा मगर रात होगी
ये क़ुदरत की भारी करामात होगी
ज़माना हँसा था ज़माना हँसेगा ।

कभी फिर मिलोगे तो कैसा लगेगा !
नहीं फिर मिलोगे तो कैसा लगेगा !

कभी फिर मिलोगे तो कैसा लगेगा ।
नहीं फिर मिलोगे तो कैसा लगेगा ।।