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रात गए / कांतिमोहन 'सोज़'
Kavita Kosh से
रात गए
रचनाकार | कांतिमोहन 'सोज़' |
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प्रकाशक | |
वर्ष | 2002 |
भाषा | हिन्दी |
विषय | ग़ज़लें और गीत |
विधा | |
पृष्ठ | 100 |
ISBN | |
विविध |
इस पन्ने पर दी गई रचनाओं को विश्व भर के स्वयंसेवी योगदानकर्ताओं ने भिन्न-भिन्न स्रोतों का प्रयोग कर कविता कोश में संकलित किया है। ऊपर दी गई प्रकाशक संबंधी जानकारी छपी हुई पुस्तक खरीदने हेतु आपकी सहायता के लिये दी गई है।
गीत
- भूमिका / कांतिमोहन 'सोज़'
- आया बसन्त आया ! / कांतिमोहन 'सोज़'
- एक बार कहीं मैं सुन पाता ! / कांतिमोहन 'सोज़'
- पिया सों कहियो जाय ! / कांतिमोहन 'सोज़'
- मन भरा नहीं ! / कांतिमोहन 'सोज़'
- साँवरिया घर आजा ! / कांतिमोहन 'सोज़'
- साँवरी सुरतिया तोरी बावरा बनाए ! / कांतिमोहन 'सोज़'
- बुन्दियाँ पड़ने लगीं ! / कांतिमोहन 'सोज़'
- छोटा सा बलमा मोरे / कांतिमोहन 'सोज़'
- भोला मन कुछ समझ न पाया ! / कांतिमोहन 'सोज़'
- तू इन फूलों से कर न प्यार ! / कांतिमोहन 'सोज़'
- कभी फिर मिलोगे तो कैसा लगेगा ! / कांतिमोहन 'सोज़'
- मितवा कहाँ गया मोरा चैन ! / कांतिमोहन 'सोज़'
- मन है एक पपीहा / कांतिमोहन 'सोज़'
- मितवा कौन तुझे समझाए ! / कांतिमोहन 'सोज़'
- फिर से आ जाओ / कांतिमोहन 'सोज़'
- तोसों कहा तकरार बदरवा ! / कांतिमोहन 'सोज़'
- बंसी ऐसी तो न बजा ! / कांतिमोहन 'सोज़'
- धरती को सहला जा रे / कांतिमोहन 'सोज़'
- कैसी मजबूरी है / कांतिमोहन 'सोज़'
- कहा करूँ मोरी आली / कांतिमोहन 'सोज़'
- सँवरिया आन मिलो ! / कांतिमोहन 'सोज़'
- मन के दुआरे / कांतिमोहन 'सोज़'
- हम हिन्दू है न मुसलमाँ हैं हम मेहनत करनेवाले हैं / कांतिमोहन 'सोज़'
- पैसा पैसा पैसा / कांतिमोहन 'सोज़'
- नईं पीना मेरे यार सिगरेट नईं पीना / कांतिमोहन 'सोज़'
- सा रे गा मा हो जाए / कांतिमोहन 'सोज़'
- जमुना के तीर कान्हा बाँसुरी बजाए ! / कांतिमोहन 'सोज़'
- इस दिल में अब एक धुँधली सी तस्वीर है तेरी / कांतिमोहन 'सोज़'
- तुझे क्या हुआ मेरे हमसफ़र / कांतिमोहन 'सोज़'
- आली मोरा मोहना आयो रे मोरे आँगना ! / कांतिमोहन 'सोज़'
ग़ज़लें
- नएपन से मैं कुछ घबरा उठा था / कांतिमोहन 'सोज़'
- सब गया फिर भी सब बचा तुझमें / कांतिमोहन 'सोज़'
- ज़माने ने मारे जवां कैसे-कैसे / कांतिमोहन 'सोज़'
- हमको जुनूने-इश्क़ ने क्या-क्या बना दिया / कांतिमोहन 'सोज़'
- शेख से रस्मो-राह कर देखें / कांतिमोहन 'सोज़'
- जितना जीता हूँ उतना मरता हूँ / कांतिमोहन 'सोज़'
- मेरे नदीम मेरे ग़मगुसार रहने दे / कांतिमोहन 'सोज़'
- कभी कबाड़िया बनकर कभी नबी बनकर / कांतिमोहन 'सोज़'