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सब गया फिर भी सब बचा तुझमें / कांतिमोहन 'सोज़'
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सब गया फिर भी सब बचा तुझमें ।
ज़िन्दगी कुछ तो है नया तुझमें ।।
सादगी कह उसे कि पुरकारी,
ढूँढ़ता ही रहा बक़ा तुझमें ।
कोई पूछे तो क्या बताऊँगा,
मुझको नायाब क्या मिला तुझमें ।
मेरा सब-कुछ तो ले गया बाज़ार,
तू बता तेरा कुछ बचा तुझमें ।
अब किसे खोजने कहाँ जाऊँ,
मैं तो तहलील हो गया तुझमें ।
मेरा दामन भरा है ख़ुशियों से,
रंजो-ग़म का है सिलसिला तुझमें ।
सोज़ सा बे-हया नहीं देखा,
खोजता ही रहा वफ़ा तुझमें ।।