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भूमिका / कांतिमोहन 'सोज़'

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रात गए मेरी ग़ज़लों और गीतों का ऐसा संग्रह है जिसे हिंदी-उर्दू क्षेत्र के संगीत-रसिकों को ध्यान में रखकर तैयार किया गया हैI इस संग्रह में मैंने अपनी ऐसी रचनाओं को जगह दी है जिनकी सार्थकता उनके गाये जाने में हैI दरअस्ल हुआ यूं कि पिछले दिनों मेरे मित्र और जाने-माने संगीतकार काजल घोष ने अपने स्टूडियो और निजी देख-रेख में इस संग्रह की पहली 8 ग़ज़लों का एक ऑडियो कैसेट तैयार करायाI मधुर संगीत की पृष्टभूमि में ग़ज़ल-गायकों की सुरीली और सधी हुई आवाज़ में अपना कलाम सुनकर मुझे जो तजरुबा हुआ वो कुछ अलग ही क़िस्म का थाI इससे मुझे याद आया कि काजल के ही संगीत-निर्देशन में जब परचम का कैसेट बना था और उसमें मेरे कई गीत शामिल किये गए थे तब भी मुझे ख़ुशी और हैरत का ऐसा ही मिला-जुला अनुभव हुआ थाI
इसके साथ ही मन में यह विचार आया कि मैं गाहे-गाहे संगीत पर आधारित जिन ग़ज़लों और गीतों की रचना करता रहा हूं उन्हें अब संगीतकारों, गायकों और रसिकों के सामने पेश करने की ज़िम्मेदारी भी शायद मुझ पर ही आयद होती हैI लिहाज़ा यह सोचा गया कि ऑडियो कैसेट के साथ ही इस संग्रह को भी जारी कर दिया जायI
संगीत को लेकर मेरा कोई दावा नहीं हैI इस शास्त्र के बारे मैं मेरी जानकारी न के बराबर हैI लेकिन, लड़कपन से मेरे कानों को संगीत के सभी रूप भाते रहे हैं और ख़ुशक़िस्मती से कुछ अच्छे संगीतकारों और रसिकों से मेरी सोहबत भी रही हैI मैं यह भी महसूस करता रहा हूं कि हिंदी-उर्दू क्षेत्र में संगीत और साहित्य का जो सुंदर और मनभावन संगम अमीर खुसरो के ज़माने से चला आ रहा है, पिछले दौर में उसमें कुछ इज़ाफ़ा होने के बजाय कुछ कमी ही आयी है और इसे दुरुस्त करने के लिए शायद कुछ अदीबों को पहल करनी होगीI
मेरा यह दावा नहीं कि यह पहल करने के लिए मैं ही सबसे मुनासिब शख्स हूंI क़दम-क़दम पर हीरे उगलनेवाली भारत भूमि का कोई होशमन्द सपूत ऐसा वाहियात दावा नहीं करेगाI लेकिन हम देखते भी तो नहीं रह सकतेI बहरहाल किसी न किसी को तो यह पहल करनी ही थीI मेरा इसरार है कि इस संग्रह को इसी रौशनी में देखा जायI
यूं तो समर्थ गायक गंभीर से गंभीर और कलात्मक ग़ज़लों को भी अपनी गायकी से संवारते रहे हैं लेकिन शायराना ज़िंदगी में कुछ चीज़ें ऐसी भी होती हैं जो शायद वजूद में ही इसलिए आती हैं कि उन्हें गाया जायI मेरी कोशिश रही है कि इस संग्रह में उन्हीं चीज़ों को शामिल किया जाय जिन्हें रचने के बाद मैंने अक्सर यह सोचा है कि अगर इन्हें सुरों से सजाया नहीं गया तो मेरा लिखना ही अकारथ हो जाएगाI यह संकलन तैयार करते वक़्त मेरी ऑडिएंस लगातार मेरी आंखों के सामने रही है और मेरी कोशश रही है कि यह छोटा सा संकलन मेरी रचनाशीलता की सही और पूरी नुमाइंदगी करेI
मैंने इस संग्रह की किसी भी ग़ज़ल में पांच से ज़्यादा शेरों को जगह नही दी है हालांकि मेरी ग़ज़लों में सात शेर ज़रूर होते हैं I मैंने देखा है कि ग़ज़लगायक अपने गायन के लिए अक्सर तीन या चार शेर ही चुनते हैं I एक बार सोचा कि ज़्यादा शेर होने से गानेवालों को इंतख़ाब करने की सहूलत हो जाएगी , लेकिन फिर सोचा कि उन्हें ज़हमत देने के बजाय ये ज़िम्मा खुद शायर ही ले तो अच्छा है I
संग्रह आपके हाथों में है , और कैसेट भी I इसे ज़्यादा से ज़्यादा रसिकों तक पहुंचाने में मेरा हाथ बटाइये और इसकी योजना और इसमें शामिल ग़ज़लों और गीतों के बारे में अपनी राय खुलकर लिखिए, इस बात की बिलकुल परवा न करते हुए कि वो मुझे कैसी लगेगी I मुझे अखरेगी तो सिर्फ आपकी चुप्पी, क्योंकि -
आतिश नहीं तो उसकी कोई बात ही चले
उसके बग़ैर शेर मुझे सूझता नहीं I