दुनिया ने कितना समझाया
भोला मन कुछ समझ न पाया ।।
आँख लगी तो सपने देखे
सपनों में चाँदी-सोना था
आँख खुली तो क्या होना था
झूठा था सारा सरमाया !
मूरख मन फिर-फिर भरमाया ।।
भोला मन कुछ समझ न पाया ।।
आँख खुली तो मन घबराया
पाया जो सब-कुछ खोना था
आँख लगी तो क्या होना था
झूठे जग की झूटी माया !
मूरख मन फिर-फिर भरमाया ।।
भोला मन कुछ समझ न पाया ।।
भोला मन कुछ समझ न पाया ।।