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भोला मन कुछ समझ न पाया ! / कांतिमोहन 'सोज़'

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दुनिया ने कितना समझाया
भोला मन कुछ समझ न पाया ।।

आँख लगी तो सपने देखे
सपनों में चाँदी-सोना था
आँख खुली तो क्या होना था
झूठा था सारा सरमाया !
मूरख मन फिर-फिर भरमाया ।।

भोला मन कुछ समझ न पाया ।।

आँख खुली तो मन घबराया
पाया जो सब-कुछ खोना था
आँख लगी तो क्या होना था
झूठे जग की झूटी माया !
मूरख मन फिर-फिर भरमाया ।।

भोला मन कुछ समझ न पाया ।।
भोला मन कुछ समझ न पाया ।।