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हमको जुनूने-इश्क़ ने क्या-क्या बना दिया / कांतिमोहन 'सोज़'
Kavita Kosh से
हमको जुनूने-इश्क़ ने क्या-क्या बना दिया ।
जब कुछ न बन सके तो तमाशा बना दिया ।।
काँटों की क़ैद में भी तबस्सुम<ref>मुस्कान</ref> था बरक़रार,
मजनूं को गिर्दो-पेश ने ग़ुंचा<ref>कली</ref> बना दिया ।
दीवानगी है जुर्म वो मुजरिम कहाँ गया,
जिसने वसीअ दश्त<ref>विशाल जंगल</ref> को दरिया<ref>समन्दर</ref> बना दिया ।
तुम जिसको मारने की दवा ढूँढ़ते फिरे,
उस दर्द ने तो तुमको मसीहा बना दिया ।
लैला हज़ार साल में मजनू न बन सकी,
मजनू को एक लम्हे ने लैला बना दिया।
यारों का मशविरा है तख़ैयुल<ref>कल्पना</ref> को दे लगाम
तेरी ग़ज़ल ने उसको ग़ज़ाला<ref>हिरण शावक</ref> बना दिया।
उसकी तबाहियों पे हंसो पर ये सोचकर,
तनहाइयों ने सोज़ को ऐसा बना दिया ।।
शब्दार्थ
<references/>