भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
कहा करूँ मोरी आली / कांतिमोहन 'सोज़'
Kavita Kosh से
घिर-घिर आई बदरिया कारी
कहा करूँ मोरी आली!
ता-ता थैया करे पुरबैया
थिरकत डाली-डाली
करी बदरिया कारी कोयलिया
कुहुक रही मतवाली !
कहा करूँ मोरी आली ।।
घिर-घिर आई बदरिया कारी
कहा करूँ मोरी आली ।।
बाहर-बाहर सोर मचत है
भीतर-भीतर खाली
पपिहा ताने दादुर पूरे
गावत ताल-बेताली
कहा करूँ मोरी आली !
घिर-घिर आई बदरिया कारी
कहा करूँ मोरी आली ।।