एक बार कहीं मैं सुन पाता !
सुन पाता तो मैं कुछ कह पाता ।।
अलफ़ाज़ जो होठों तक आए
पर जिनकी अदाई हो न सकी
फ़रियाद जो सीने में उभरी
जिसकी सुनवाई हो न सकी
सौ बार जिसे मैं सुन न सका
एक बार कहीं मैं सुन पाता
सुन पाता तो मैं कुछ कह पाता ।।
जो हाथ दबा था संग-तले
ख़ामोश था वो ख़ामोश न था
कुछ चीख़ रहा था सन्नाटा
सुनने का किसी को होश न था
सौ बार जिसे मैं सुन न सका
एक बार कहीं मैं सुन पाता
सुन पाता तो मैं कुछ कह पाता ।।