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एक बार कहीं मैं सुन पाता ! / कांतिमोहन 'सोज़'

एक बार कहीं मैं सुन पाता !
सुन पाता तो मैं कुछ कह पाता ।।

अलफ़ाज़ जो होठों तक आए
पर जिनकी अदाई हो न सकी
फ़रियाद जो सीने में उभरी
जिसकी सुनवाई हो न सकी
सौ बार जिसे मैं सुन न सका
एक बार कहीं मैं सुन पाता
सुन पाता तो मैं कुछ कह पाता ।।

जो हाथ दबा था संग-तले
ख़ामोश था वो ख़ामोश न था
कुछ चीख़ रहा था सन्नाटा
सुनने का किसी को होश न था
सौ बार जिसे मैं सुन न सका
एक बार कहीं मैं सुन पाता
सुन पाता तो मैं कुछ कह पाता ।।