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जमुना के तीर कान्हा बाँसुरी बजाए ! / कांतिमोहन 'सोज़'
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जमुना के तीर कान्हा बाँसुरी बजाए !
बाँसुरी की तान मोरे प्राण में समाए !
बिसरो सब काम-काज
भूलि गई लोक-लाज
कैसो रंग चढ़ो आज
समझ कछु न आए ।
जमुना के तीर कान्हा बाँसुरी बजाए ।।
थिरकें पग मन अधीर
नीकौ लागे अबीर
सीतल सुमधुर समीर
खींचकै बुलाए
जमुना के तीर कान्हा बाँसुरी बजाए ।
बाँसुरी की तान मोरे प्राण में समाए ।।