भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
मन भरा नहीं ! / कांतिमोहन 'सोज़'
Kavita Kosh से
मन भरा नहीं !
अमृत-सिन्धु घन आया गया झरा नहीं !
मन भरा नहीं !
भरा नहीं भरा नहीं ।।
मन का चातक उदास
श्वास-श्वास तृषित बाँस
स्वाति-बिन्दु लिए अंक घन ढरा नहीं !
अमृत-सिन्धु घन आया गया झरा नहीं !
मन भरा नहीं !
भरा नहीं भरा नहीं ।।
गरजो मत बरसो घन
तरसे क्यों सरसे मन
रोम-रोम तृषावन्त यह गिरा नहीं
अमृत-सिन्धु घन आया गया झरा नहीं !
मन भरा नहीं !
भरा नहीं भरा नहीं ।।