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करे सरकार अत्याचार तो जनता कहाँ जाये / डी. एम. मिश्र
Kavita Kosh से
करे सरकार अत्याचार तो जनता कहाँ जाये
मचा हो दिल में हाहाकार तो जनता कहाँ जाये
हुकूमत है तुम्हारी तो तुम्हीं से ही तो पूछेंगे
छिने जीने का गर अधिकार तो जनता कहाँ जाये
हमारा देश है हम सब वतन में एक जैसे हैं
करें अपने जो दुर्व्यवहार तो जनता कहाँ जाये
चले आँधी हमारे रोकने से भी न रुक पाये
उजड़ जाये अगर घरबार तो जनता कहाँ जाये
इधर कश्ती हुई जर्जर उधर तूफान बिफरा है
न होता हो जो बेड़ापार तो जनता कहाँ जाये
पराये तो पराये हैं यहाँ अपने भी बेगाने
मिले गर हर तरफ इन्कार तो जनता कहाँ जाये