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लेकिन सवाल टेढ़ा है / डी. एम. मिश्र
Kavita Kosh से
लेकिन सवाल टेढ़ा है
रचनाकार | डी. एम. मिश्र |
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प्रकाशक | शिल्पायन पब्लिशर्स एण्ड डिस्ट्रीब्यूटर्स, 10295, लेन नं 01, वैस्ट गोरखपार्क, शाहदरा, दिल्ली -110032 |
वर्ष | प्रथम संस्करण 2020 |
भाषा | हिंदी |
विषय | रचना संग्रह |
विधा | ग़ज़ल |
पृष्ठ | 128 |
ISBN | 978-81-940025-2-9 |
विविध |
इस पन्ने पर दी गई रचनाओं को विश्व भर के स्वयंसेवी योगदानकर्ताओं ने भिन्न-भिन्न स्रोतों का प्रयोग कर कविता कोश में संकलित किया है। ऊपर दी गई प्रकाशक संबंधी जानकारी छपी हुई पुस्तक खरीदने हेतु आपकी सहायता के लिये दी गई है।
रचनाएँ
- भूमिका / लेकिन सवाल टेढ़ा है
- हवा खि़लाफ़ है लेकिन दिए जलाता हूँ / डी. एम. मिश्र
- अब ये ग़ज़लें मिज़ाज बदलेंगी / डी. एम. मिश्र
- ग़मे आशिक़ी ने सँभलना सिखाया / डी. एम. मिश्र
- इस चमन में अब सुकूँ मिलता नहीं / डी. एम. मिश्र
- कैसे हो पार कश्ती घबरा के मर न जाऊँ / डी. एम. मिश्र
- इन्साँ की शक़्ल में जो मौजूद हैं क़साई / डी. एम. मिश्र
- उड़ी ख़बर कि शहर रोशनी में डूबा है / डी. एम. मिश्र
- एक ज़ालिम की मेहरबानी पे मैं छोड़ा गया / डी. एम. मिश्र
- तुम्हारे है क्या दिल में हम जानते हैं / डी. एम. मिश्र
- प्यासे भौंरों को अमराई देता हूँ / डी. एम. मिश्र
- कदम-कदम पे दोस्तो यहाँ पे ख़तरा है / डी. एम. मिश्र
- बंद कमरों में कै़द रहता हूँ / डी. एम. मिश्र
- ग़ज़लकार सब लगे हुए फ़नकारी में / डी. एम. मिश्र
- घुटन भरा है गाँव अब कहाँ चला जाये / डी. एम. मिश्र
- नज़र पे है चढ़ा आला विकास का चश्मा / डी. एम. मिश्र
- कब किसानों की बेहतरी की बात करियेगा / डी. एम. मिश्र
- खूब खाया गया शौचालयों के ठेके में / डी. एम. मिश्र
- मुझे पता नहीं वो क्यों हुआ ख़फ़ा मुझसे / डी. एम. मिश्र
- ग़रीबी से बढ़कर सज़ा ही नहीं है / डी. एम. मिश्र
- ढह गये सारे क़िले अभिमान के / डी. एम. मिश्र
- आग लगाने वाले आग लगाते हैं / डी. एम. मिश्र
- काश्मीर का बच्चा-बच्चा बोल रहा / डी. एम. मिश्र
- आततायियों से क्या लड़ने वाला कोई है / डी. एम. मिश्र
- जैसी रोटी हम खाते हैं / डी. एम. मिश्र
- मेरी आँखों से उसे दरिया बहाना आ गया / डी. एम. मिश्र
- दंगे करा रहे हो मज़हब के नाम पर / डी. एम. मिश्र
- फ़िरकापरस्त ताक़तें अपने उरूज पर / डी. एम. मिश्र
- हम कब तक उसको माफ़ करें अब आर पार हो जाने दो / डी. एम. मिश्र
- अड़चनें भी खू़ब हैं तो आशिक़ी भी खू़ब है / डी. एम. मिश्र
- नज़र से गिरे तो किधर जायेंगे फिर / डी. एम. मिश्र
- बवंडर उठ रहा है क्या तुम्हें इसकी ख़बर भी है / डी. एम. मिश्र
- ज़हर बो कर बहुत खुश है बहुत इतरा रहा है वो / डी. एम. मिश्र
- हमें भी पता है शहर जल रहा है / डी. एम. मिश्र
- बेगुनाहों को सताता हुक्मराँ भी बन रहा / डी. एम. मिश्र
- इतनी चोट पड़ी दिल पर डर निकल चुका / डी. एम. मिश्र
- बोलने से लोग घबराने लगे / डी. एम. मिश्र
- यूँ गुरूरे ताज़-व-तख़्त क्या कोई पहले भी था / डी. एम. मिश्र
- कई दिन से तुम्हें हम याद करते हैं चली आओ / डी. एम. मिश्र
- बड़ा शोर है गीत कैसे सुनाऊँ / डी. एम. मिश्र
- गरीबों के बारिश में घर गिर गये हैं / डी. एम. मिश्र
- बहुत कुछ तुम्हारे शहर से है ग़ायब / डी. एम. मिश्र
- शरीफ़ों की मैंने शराफ़त भी देखी / डी. एम. मिश्र
- क़िताबें पढ़ के चार कुछ भी न हासिल होगा / डी. एम. मिश्र
- इस बार हमारी कश्ती तूफां से टकरायी है / डी. एम. मिश्र
- लगा के कर हुज़ूर इतना न ज्यादा छीनो / डी. एम. मिश्र
- आग जलाकर रक्खो मौसम नम ज़्यादा है / डी. एम. मिश्र
- सत्य हो सकता परेशान पराजित तो नहीं / डी. एम. मिश्र
- जैसे वो पंचतत्व में विलीन हो गये / डी. एम. मिश्र
- मेरे हालात पे हंसने वालो / डी. एम. मिश्र
- हूँ मुसाफ़िऱ सफ़र ज़रूरी है / डी. एम. मिश्र
- इरादा नेक है गर तो वो बोले झूठ इतना क्यों / डी. एम. मिश्र
- क्यों झूठी तारीफ करें हम, क्या हम किसी के चमचे हैं / डी. एम. मिश्र
- कहाँ तक मेरा साथ दोगे बताओ / डी. एम. मिश्र
- ये कोई उत्सव मनाने की घड़ी / डी. एम. मिश्र
- देश के हालात मेरे बद से बदतर हो गये / डी. एम. मिश्र
- हमारी ज़िंदगी में पहले भी व्यवधान आया है / डी. एम. मिश्र
- किसी सैलाब के आने की आशंका से डरता हूँ / डी. एम. मिश्र
- आप बेशक दोस्ती को सबसे ऊपर देखिये / डी. एम. मिश्र
- देख लीं हमने बहुत इस देश की दुश्वारियाँ / डी. एम. मिश्र
- रूह का कर्ज़ साँसों पे भारी यहाँ / डी. एम. मिश्र
- हो गयी अंधी है मद में चूर सत्ता / डी. एम. मिश्र
- देश के आकाओं का डिगने लगा ईमान है / डी. एम. मिश्र
- लोग क्यों नज़रें छुपाने लग गये / डी. एम. मिश्र
- खेतियां नफ़रतों की जो करते रहे / डी. एम. मिश्र
- दिले हज़ीं है बहुत बेकरार सीने में / डी. एम. मिश्र
- नाज़ुक हमारा दिल था तार-तार हो गया / डी. एम. मिश्र
- गर हौसला बुलंद तुम्हारा तो कैसी मुश्किल है / डी. एम. मिश्र
- खुद अच्छा किरदार निभायें फिर उससे उम्मीद करें / डी. एम. मिश्र
- ख़ार को भी गले का हार बना लेते हैं / डी. एम. मिश्र
- है बहुत डरपोक वो लेकिन है सत्ता हाथ में / डी. एम. मिश्र
- मुश्किलें हिस्से में मेरे आ गयीं / डी. एम. मिश्र
- ज़ोर मुझ पर आज़माना चाहता है / डी. एम. मिश्र
- जुल्म के इस दौर में बोलेगा कौन / डी. एम. मिश्र
- ये दुनिया है इसके फ़साने बहुत हैं / डी. एम. मिश्र
- भँवर में है कश्ती किनारे कहाँ हैं / डी. एम. मिश्र
- अमन चैन की फ़िक्र करते हैं लेकिन / डी. एम. मिश्र
- भले मजबूरियां होंगी मगर हम साथ रहते हैं / डी. एम. मिश्र
- मुझे यकीन है सूरज यहीं से निकलेगा / डी. एम. मिश्र
- मुझे मालूम है नज़रों में उसकी ख़ंजर है / डी. एम. मिश्र
- किसी के मौन को मुस्कान तलक ले जाये / डी. एम. मिश्र
- आज की रात है उदास बहुत / डी. एम. मिश्र
- अपनी खुशबू से मुअत्तर कर दे / डी. एम. मिश्र
- समर में चलो फिर उतरते हैं हम भी / डी. एम. मिश्र
- क़दम-दर-क़दम मैं छला जा रहा हूँ / डी. एम. मिश्र
- यही जनक्रान्ति परिवर्तन नहीं लाये तो फिर कहना / डी. एम. मिश्र
- कफ़न बाँधे हुए सर पर निकल आये दिवाने फिर / डी. एम. मिश्र
- मेरी बरबादियों में जश्न का आया मज़ा उसको / डी. एम. मिश्र
- अपना ही घर भरने वालो डूब मरो / डी. एम. मिश्र
- जतन हज़ार किया फलसफ़ा नहीं मिलता / डी. एम. मिश्र
- करे सरकार अत्याचार तो जनता कहाँ जाये / डी. एम. मिश्र
- भक्त नादान बने बैठे हैं / डी. एम. मिश्र
- देश निकाला दे देगा तो कहाँ जांयगे / डी. एम. मिश्र
- ज़िंदगी को समझने में देरी हुई / डी. एम. मिश्र
- प्यार में भी वो वासना देखे / डी. एम. मिश्र
- नज़र उठाये तो वो बेक़रार हो जाये / डी. एम. मिश्र
- मेरे अश्कों का राज़ बूझो भी / डी. एम. मिश्र
- नींद में भी नज़र से गुजरे हैं / डी. एम. मिश्र
- अभी तक तो उसे देखा नहीं है / डी. एम. मिश्र
- सागर क्या जाने कितनी है पीर हमारी आँखों में / डी. एम. मिश्र
- हुस्न पर बेझिझक नज़र डालो / डी. एम. मिश्र
- ग़म को भी अपने छुपाना सीखिये / डी. एम. मिश्र
- मैं तेरी सादगी पे मरता हूँ / डी. एम. मिश्र
- झील में खिलते कमल दल की क़तारों की तरह / डी. एम. मिश्र
- तेरे प्यार में हर सितम है गवारा / डी. एम. मिश्र
- अंधों को भले लग रहा फस्लेबहार है / डी. एम. मिश्र
- जा के दिल्ली की गलियों में डर देख लो / डी. एम. मिश्र
- यूँ अचानक हुक्म आया लॉकडाउन हो गया / डी. एम. मिश्र
- परिंदे किस तरह पिंजरों में रहते होंगे अब जाना / डी. एम. मिश्र
- दाना डाल रहा चिड़ियों को मगर शिकारी है / डी. एम. मिश्र
- हो मालूम तुझे कुदरत के तिरस्कार की हद क्या है / डी. एम. मिश्र
- छूट गया घर तब जाना घर क्या होता है / डी. एम. मिश्र
- कोरोना से प्राण बचाकर भूखा मारो क्या मतलब / डी. एम. मिश्र
- पर्वत जैसे लगते हैं बेकार के दिन / डी. एम. मिश्र
- इधर भुखमरी, उधर कोरोना दुविधा में मजदूर / डी. एम. मिश्र
- बहुत याद आते हैं गुज़रे हुए दिन / डी. एम. मिश्र
- लगेगी न तुमको हमारी ख़बर तक / डी. एम. मिश्र
- किसी के पास में चेहरा नहीं है / डी. एम. मिश्र
- रास्ता यूँ मेरा ढलान में है / डी. एम. मिश्र