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ये दुनिया है इसके फ़साने बहुत हैं / डी. एम. मिश्र

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ये दुनिया है इसके फ़साने बहुत हैं
परिंदे हैं बेघर, ठिकाने बहुत हैं

नज़र से करें क़त्ल फिर मुस्करा दे
हसीनों के बेशक निशाने बहुत है

चमन है, यहाँ फूल कांटे सभी हैं
मगर ये नज़ारे सुहाने बहुत हैं

अगरचे किसी के नहीं हैं वो लेकिन
सुना है कि उनके दिवाने बहुत हैं

कभी दिन ढला तो कभी चाँद निकला
अगर वो न आयें बहाने बहुत हैं